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आयोग का अधिदेश

आयोग का अधिदेश

धारा 10
राष्‍ट्रीय महिला आयोग अधिनिमय, 1990
(भारत सरकार का 1990 का अधिनियम संख्‍या 20)

  1. आयोग निम्नलिखित सभी या किन्ही कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात् :-

    1. महिलाओं के लिए संविधान और अन्य विधियों के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण और परीक्षा करना ;
       
    2. उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रति वर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर जो आयोग ठीक समझे, केन्द्रीय सरकार को रिपोर्ट देना ;
       
    3. ऐसी रिपोर्ट में महिलाओं की दशा सुधारने के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा उन रक्षोपायों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करना ;
       
    4. संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं को प्रभावित करने वाले विद्यमान उपबंधों का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उनके संशोधनों की सिफारिश करना जिससे कि ऐसे विधानों में किसी कमी, अपर्याप्तता या त्रुटियों को दूर करने के लिए उपचारी विधायी उपायों का सुझाव दिया जा सके ;
       
    5. संविधान और अन्य विधियों के उपबंधों के महिलाओं से संबंधित अतिक्रमण के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना ;
       
    6. निम्नलिखित से संबंधित विषयों पर शिकायतों की जांच करना और स्वप्रेरणा से संज्ञान लेना :-
      1. महिलाओं के अधिकारों का वंचन ;
      2. महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए और समता तथा विकास का उद्देश्य प्राप्‍त करने के लिए भी अधिनियिमत विधियों का अक्रियान्वयन ;
      3. महिलाओं की कठिनाइयों को कम करने और उनका कल्याण सुनिश्चित करने तथा उनको अनुतोष उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ नीतिगत विनिश्चयों, मागर्दशर्क सिद्धांतों या अनुदेशों का अनुपालन और ऐसे विषयों से उद्भूत प्रश्नों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना ;
         
    7. महिलाओं के विरुद्ध विभेद और अत्याचारों से उद्भूत विनिर्दिष्ट समस्याओं या स्थितियों का विशेष अध्ययन या अन्वेषण कराना और बाधाओं का पता लगाना जिससे कि उनको दूर करने की कार्य योजनाओं की सिफारिश की जा सके ;
       
    8. संवर्धन और शिक्षा संबंधी अनुसंधान करना जिससे कि महिलाओं का सभी क्षेत्रों में सम्यक् प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दिया जा सके और उनकी उन्नति में अड़चन डालने के लिए उत्‍तरदायी कारणों का पता लगाना जैसे कि आवास और बुनियादी सेवाओं की प्राप्‍ति में कमी, उबाऊपन और उपजीविकाजन्य स्वास्थ्य परिसंकटों को कम करने के लिए और महिलाओं की उत्पादकता की वृद्धि के लिए सहायक सेवाओं और प्रौद्योगिकी की अपर्याप्‍तता ;
       
    9. महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और उन पर सलाह देना ;
       
    10. संघ और किसी राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना ;
       
    11. किसी जेल, सुधार गृह, महिलाओं की संस्था या अभिरक्षा के अन्य स्थान का, जहां महिलाओं को बंदी के रूप में या अन्यथा रखा जाता है, निरीक्षण करना या करवाना, और उपचारी कार्रवाई के लिए, यदि आवश्यक हो, संबंधित प्राधिकारियों से बातचीत ;
       
    12. बहुसंख्यक महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रश्‍नों से संबंधित मुकदमों के लिए धन उपलब्ध कराना ;
       
    13. महिलाओं से संबंधित किसी बात के, और विशष्‍टतया उन विभिन्न कठिनाइयों के बारे में जिनके अधीन महिलाएं कार्य करती हैं, सरकार को समय-समय पर रिपोर्ट देना ;
       
    14. कोई अन्य विषय जिसे केन्‍द्रीय सरकार उसे निर्दिष्‍ट करे ।
       
  2. केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्‍येक सदन के समक्ष रखवाएगी और उसके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्‍तावित  कारर्वाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिशें अस्वीकृत की गई हैं तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
     
  3. जहां कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है वहां आयोग ऐसी रिपोर्ट या उसके भाग की एक प्रति उस राज्य सरकार को भेजेगा जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगी और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्‍तावित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिशें अस्वीकृत की गई हैं तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा ।
     
  4. आयोग को उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (च) के उपखंड (i) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते समय और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में वे सभी शक्तियां होंगी जो वाद का विचारण करने वाले सिवल न्यायालय की हैं, :-
    1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्‍यिक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;
    2. किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ;
    3. शपथपत्र पर साक्ष्य ग्रहण करना ;
    4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अपेक्षा करना ;
    5. साक्ष्यों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना ; और
    6. कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए ।