आयोग के बारे में
राष्टीय महिला आयोग की सांविधिक निकाय के रूप में स्थापना
- महिलाओं के लिए संवैधानिक और विधायी सुरक्षापायों की समीक्षा करने;
- उपचारी विधायी उपायों की सिफारिश करने;
- शिकायतों के निवारण को सुकर बनाने; और
- महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देने
के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम,1990 (भारत सरकार का 1990 का अधिनियम संख्या 20) के तहत जनवरी, 1992 में की गई।
अपने अधिदेश के अनुरूप, आयोग ने रिपोर्टाधीन वर्ष के दौरान महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए अनेक उपाय किए और उनके आर्थिक सशक्तीकरण के लिए कार्य किया। आयोग ने लक्षद्वीप के अलावा सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का दौरा पूरा कर लिया है और महिलाओं की स्थिति एवं अनके सशक्तीकरण का मूल्यांकन करने के लिए जेंडर विवरणिकाएं तैयार कर ली हैं। इसे बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होती हैं और शीघ्र न्याय दिलाने के लिए अनेक मामलों में स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई की है। आयोग ने बाल विवाह के मुद्दे को उठाया है, कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों, पारिवारिक महिला लोक अदालतों को प्रायोजित किया है और दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961, प्रसव-पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994, भारतीय दंड संहिता, 1860 और राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 को अधिक सख्त एवं प्रभावी बनाने के लिए उनकी समीक्षा की। आयोग ने कार्यशालाओं/परामर्श बैठकों का आयोजन किया, महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण पर विशेषज्ञ समितियों का गठन किया, जेंडर जागरूकता के लिए कार्यशालाओं/संगोष्ठियों का आयोजन किया और मादा भ्रूण हत्या, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा आदि के विरुद्ध समाज में जागरूकता विकसित करने के उद्देयश्य से इनके विरुद्ध प्रचार अभियान चलाया।
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