आन्ध्र प्रदेश देवदासी (समर्पण का प्रतिषेध) अधिनियम, 1988
राज्य महिला आयोग (आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना) के सहयोग से हैदराबाद में तारीख 23 फरवरी, 2015 को भारत में देवदासियों की दशा पर एक क्षेत्रीय परामर्श (मंत्रणा) का आयोजन किया गया था ।
किसी महिला का किसी देवी से विवाह करने की परंपरा – जो प्रारंभ में अपने आपको स्वेच्छया ईश्वर और उसके मन्दिर से जोड़ने और वहां के केयरटेकर की जिम्मेदारी उठाने की महिला श्रद्धालुओं की धार्मिक प्रथा के रूप में शुरू हुई, एक जघन्य प्रथा के रूप में विकृत हो गई है जिसमें जोगिनी/देवदासी से, जो भी उसे कहा जाता है, उच्च जातियों के स्थानीय ग्रामीण बुजुर्गों की सेवा करने के लिए बलपूर्वक वेश्यावृत्ति कराई जाती है ।
इस विषय पर कर्नाटक देवदासी (समर्पण का प्रतिषेध) अधिनियम, 1982, आन्ध्र प्रदेश देवदासी (समर्पण का प्रतिषेध) अधिनियम, 1988, आन्ध्र प्रदेश (आन्ध्र क्षेत्र) देवदासी (समर्पण का प्रतिषेध) अधिनियम, 1947 और महाराष्ट्र देवदासी संरक्षण और पुनर्वास अधिनियम, 2005 उपलब्ध हैं । यह परंपरा अब भी आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा और महाराष्ट्र आदि राज्यों में बहुत अधिक प्रचलित है ।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने भारत के दक्षिणी राज्यों में प्रमुख रूप से विद्यमान देवदासी प्रथा को समाप्त करने की भी पहल की है । इसके ब्यौरे उपाबंध-III में दिए गए हैं । परामर्श की सिफारिशें और रिपोर्ट महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय को अग्रिम आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई थीं ।